8 अप्रैल विश्व बंजारा दिवस पर विशेष लेख ।

भारत सहित विदेशों में भी बंजारा समाज निवास करता है । यह समुदाय विश्व में अनेक नामों से जाना जाता है जैसे यूरोप में रोमा बंजारा, जिप्सी बंजारा ,वहीं भारत में गोर बंजारा, बामणिया बंजारा, लदनिया बंजारा, जैसे कई नामों से जाना जाता है। संपूर्ण भारत में बंजारा समाज 6 करोड़ से अधिक है । यह एक व्यापारिक कौम थी जिन्होंने मुग़ल एवं अग्रेंजो के शासनकाल मैं जीवन यापन की सामग्री एवं रसद पहुंचाने का कार्य किया करते थे ।बंजारा समाज जहां से भी गुजरा वहां पर पीने की पानी की व्यवस्था अवश्य करता था। और आज जो नेशनल हाईवे कहलाते हैं वह कभी लमान मार्ग हुआ करते थे , जिसकी खोज बंजारा समाज ने की थी। ईस समाज ने पूरे देश को दिशा दिखाते हुए रसद के माध्यम से मानव जाति की सेवा करने का कार्य किया । विश्व बंजारा दिवस की शुरुआत हमारे पूर्वजों ने जिस तरीके से जगह -जगह कुआ, बावड़ी , तालाब आदि बनाकर जल की जो संरचना बनाई थी उन्ही रचनाओं से मानव पशु-पक्षी आदि अपनी प्यास बुझाते हैं। उस परंपरा को बनाए रखने और जल के महत्व को समझने के लिए विश्व बंजारा दिवस की शुरुआत की गई थी ।समाज के संत श्री सेवालाल महाराज ने 175 वर्ष पूर्व यह भविष्यवाणी की थी, एक रुपए में एक कटोरी पानी मिलेगा । आज उस संत की बात सार्थक हो रही है । यह दिवस जल बचाने का संदेश देता है और भविष्य के लिए जल की उपयोगिता के महत्व को दर्शाता है।
यह समुदाय जब से अंग्रेजों के शासन काल में इन्होंने जिस तरह से प्रताड़ित किया और क्रिमिनल एक्ट लागू कर अपराधीक जातियों की सूची में डालकर प्रताड़ना की गई । रसद पहुंचाने का जो कार्य था वह नई टेक्नोलॉजी के कारण रेल मार्ग, वाहनों आदि के कारण इनकी आर्थिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया । जिसके कारण इस समुदाय ने अपने पशुओं की रक्षा और अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित इस समाज ने जंगलों की तरफ रुख किया और वहीं पर अपना डेरा गांव व शहरों से दूर अपना आशियाना बना लिया ,और इसी कारण इन्होंने अपने धर्म को भी बचाया और अपनी सभ्यता और संस्कृति को भी जीवित रखा रखा है । परंतु जहां देश आज 21वीं सदी की ओर अग्रसर है और देश नई नई टेक्नोलॉजी से सुशोभित हो रहा है वहीं यह समाज आज भी जंगलों के अंदर रहकर अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहा है ।आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां न जाने के रास्ते हैं और न पीने के पानी की व्यवस्था है । बिजली धीरे धीरे इनके तांडों तक पहुंच रही है । शिक्षा का स्तर धीरे धीरे बढ़ रहा है परंतु पांचवी और आठवीं से आगे शिक्षा पहुंच नहीं पा रही है,कारण परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि वह अपने बच्चों को आगे तक पढ़ा सकें । गांवो से जो परिवार शहरों की ओर पलायन कर गये थे ,उनकीं स्थिति में अवश्य सुधार हुआ है । गाँवों में पिछड़ेपन का महत्वपूर्ण कारण है , इस समाज को शासन द्वारा विभिन्न केटेगरी में सम्मिलित किया जाना। क्योंकि यह समाज एक वनवासी समाज की तरह जंगलों में निवास करता है और शासन द्वारा इन्हें अलग अलग कैटेगरी में अनेक प्रदेशों में रखा गया है जैसे आन्ध्रप्रदेश ,तेलंगाना में आदिवासी कर्नाटक, दिल्ली ,पंजाब ,हरियाणा में अनुसूचित जाति महाराष्ट्र मैं विमुक्त घुमक्कड़ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और अनेक हिंदी भाषी राज्यों में इन्हें पिछड़ा वर्ग और विमुक्त घुमक्कड़ दोनों केटेगरी में सम्मिलित कर रखा है। विडंबना यह है इस समाज की जहां बाहुल्यता है ऐसे राज्य जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान जहां पर इस समुदाय की जनसंख्या एक करोड़ के लगभग है।अशिक्षित समुदाय होने के कारण व राजनीतिक दलों की मोटी चमड़ी होने से इस समुदाय के साथ हर राजनैतिक दलों ने इनका शोषण किया है । इनकी वाजिब मांग के लिए भी विधायक-सांसदो के आगे हाथ फैलाना पड़ता है । इतने बड़े समुदाय से एक भी सांसद- विधायक इन प्रदेशों में नहीं है यह आजादी के बाद से अब तक की सबसे बड़ी विडंबना है और इसी कारण इस समाज की जो जायज मांगे हैं उन मांगों को शासन के समक्ष रखने वाला कोई भी नहीं है ।जिससे यह समुदाय अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है ।भारत के सबसे बड़े लोकतंत्र के पर्व 2019 का आगाज़ हो चुका है यह वर्ग भी अपनी भागीदारी चाहता है ।
आज जहां एंग्लो इंडियन जैसे समुदाय को प्रतिनिधित्व दिया जाता है ,जो की अल्प मात्रा में है। इतने बड़े समुदाय की उपेक्षा करना कहां का न्याय है ।
आज विश्व बंजारा दिवस के अवसर पर यह समुदाय जिसने भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर और देश के लिए अपनी कुर्बानियां दी है बंजारा समाज के ऐसे वीर योद्धा चाहे गोरा बादल हो या जयमल फत्ता, संत सेवालाल जी हो या फिर रूप सिंह जी महाराज जिसको समाज अपना आदर्श मानता है और दिल्ली कि वह पावन भूमि जिस पर आज संसद भवन एवं राष्ट्रपति राष्ट्रपति भवन है । कभी उस स्थान पर बंजारा समाज का रायसीना टांडा हुआ करता था। आज जिस भूमि पर न्याय और कानून बनाने वाले देश के जनप्रतिनिधि बैठते हैं उस भूमि पर रहने वाले पूर्वज बंजारा समाज की यह दुर्दशा आज इतने सारे राजनीतिक दलों को क्यों निगाह नहीं आ रही है। क्या यह राजनीतिक दल भी चाहते हैं कि वह भी अन्य समाजों की तरह यह समाज भी सड़कों पर आएं ,कानून का उल्लंघन करें,लौकहित की संपत्ति को नुकसान पहुंचाए और राजनीतिक दलों को अपने वोट रूपी ताकत को संगठित करके अन्य समाज की तरह सत्ता में भागीदारी प्राप्त करें। क्योंकि कहावत है बच्चा जब तक रोता नहीं है तब तक मा भी दूध नहीं पिलाती है । आज लोकतंत्र परिपक्व हो चुका है देश 21वीं सदी में नई टेक्नोलॉजी के साथ आगे बढ़ रहा है ऐसे समय सारे राजनीतिक दल इस समाज की परीक्षा न ले और उनका अधिकार दिलाएं।
विश्व बंजारा दिवस के माध्यम से समाज भारत को एक सफल लोकतंत्र राष्ट्र के रूप में देखना चाहता है और इसी के लिए यह समाज कटिबद्ध है, वह चाहता है हमारे पूर्वजों ने भारत माता के लिए त्याग और बलिदान दिया है उस बलिदान को हमारी छोटी सी गलती के कारण इस राष्ट्र का अहित न हो । हमें हमारा अधिकार मिले कानून के दायरे के तहत ।हम ऐसा कोई कार्य नहीं चाहते जिससे यह राष्ट्र कमजोर हो ।
तभी विश्व बंजारा दिवस की सार्थकता पूर्ण होगी।
श्याम नायक
संरक्षक बंजारा युवा संघ मध्य प्रदेश
प्रदेश कार्यसमिति सदस्य
भाजपा मध्य प्रदेश