समाज के गौरव - संत

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संत श्री सेवालाल महाराज
15 फ़रवरी 1739 के शुभ दिन उस समय के म्हैसुर प्रांत और वर्तमान आंध्र प्रदेश के अनंतपुरम जिले की गोलालडोडी तांडा मे सेवाभाया का जन्म हुआ। उनके पिताजी का नाम भीमनायक और माताजी का नाम धमरणी था। नाम की तरह सेवादास ने बंजारा समाज में अत्यंत नम्रता से जागृती लाने की कोशीश की । सेवाभाया समाज के दृष्ठा थे, उनकी २५० वर्ष पूर्व की गयी भविष्यवाणी आज भी सार्थक हो रही है।

सेवाभाया क्रांतीकारी महात्मा सेवालाल महाराज न केवल भक्त थे, संत थे साधु या भगत थे, बल्कि देवी के एकनिष्ठ भक्त थे । उसी तरह से समाज को नयी दिशा देनेवाले क्रांतीकारी महात्मा थे। समाज की पूरी जिंदगी सेवा कर सकू, गोर कोर समाज का मुखियाँ बन उनके काम आ सकुं, इस विचार से वे आजन्म ब्रह्मचारी रहे। उनके क्रांतीकारी बोल जो मनुष्य को विचार करने को मजबुर करते है ।

सेवालाल के बोल

1) आंणजो – छांणजो – पपच मांणजो गोर बोली
हिंदी : किसी बात को पहले जानो, उसका अध्ययन करो, परिक्षण करो फिर उसे अपनाओ.

2) कोई केती मोठो छेई,
कोई केती नानक्या छेई,
केनी भजो मत,
केनी पुजो मत,
धुजो मत,
पुजा पाठमें वेळ घाले पेक्षा
करणी करेर शिको

हिंदी : कोई किसी से बड़ा नहीं कोई किसी से छोटा नहीं सब समान है। किसी के नाम का जप मत करो, किसी की पुजा मत करो, किसी से डरो मत, पुजा पाठ में वक्त बरबाद करने के बजाय कष्ट करो, कर्म करो।

3) जे छाती करीय वोर साथ रियुँ, जे हाय नाकीय वोर ढेर पडीय
हिंदी : जो हिम्मत करेगा उसी की जित होगी जो डर जायेगा उसकी हार होगी।

4) मुही मठ्ठी सर्जीत वीय केसुला नवी गोर मोरीय कोर – गोरुर राज आय
हिंदी: मुल निवासियों का दफनाया हुआ इतिहास जिंदा होगा। उदा: हडप्पा, मोहनजोदडो जीन लोगों को भारत की समाज व्यवस्था ने नकारा है वो पलास के फलो की तरह धुप मैं भी खिलेगे और एक दिन एक देश में बहुजनों का राजपाठ आयेगा। बहुजनों का इतिहास उजागर होगा। उदा महात्मा फुले, डॉ. आंबेडकर

5) घर घर नायक वीय,
चोरर घर घी रेडो रेडी हिंदय,
बोडीर सासु सामळीय कोणी,
याडीर बेटा सामळीय कोणी,
याडी न बेटा भारी बेजाय

हिंदी : शिक्षीत नकारार्थी लोगों का प्रमाण बड़ेगा, नितिहीन लोगों का राजपाठ आयेगा। चोरों को सम्मान मिलेगा, नितीहीन लोगों के पास पैसा रहेगा, सामाजिक मुल्यों का नाश होगा । माँ अपने बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी से भागेगी, जिम्मेदारी नहीं निभायेंगी तो फिर सास और बहु के बारे में क्या कहना।

6) निसर्ग सो कोसप दीवा रीय,
रपया कटोरो पाणी वकजाय,
गावडीर शिंग सोनो वेजाय,
रपयाम बार चणा वकीय,
मलेकर खबर पलकेम कळीय,
बना बळदेय गाडी धासीय

हिंदी: दुनिया में पानी को बहुत महत्व प्राप्त होगा और रुपयों से पानी बिकेगा । उदा. मिनिरल वॉटर । गौधन का विनाश होगा, सोने की किमत में गाय का सिंग बिकेगा, दुनिया विनाश की ओर बढ़ेगी और मानव जाती का अस्तित्व मुश्लिक में आयेगा और 50 कि.मी. अंतराल पर दीया दिखेगा महंगाई इतनी बढ़ेगी की 1 रुपयें में 12 चने भी नहीं आयेंगे। दुनिया इतनी तरक्की करेगी की पलक झपकते ही उसे 1000 कि.मी. दुर की बात समझेगी और दिखेगी । बैलगाडी का जमाना खत्म होगा। उपरी सेवालाल के बोल के अनुसार हम ये कह सकते है की, सेवालाल बहुत बड़े विचारक थे। सेवालाल की हर बात पर हमें गौर करना चाहिए, तभी मानवता का विकास होगा आखिर में वो कहते हैं|

‘सत्य धर्म लिणता ती रेणुर, भवसागर पार करलेणु’ (गोर बोली)
हिंदी : सत्य धर्म और लिनता से हर आदमी को रहना चाहिए, तो ही उसका भला हो सकता है और उसकी जिंदगी सफल हो सकती है।
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श्री लक्खीशाह बंजारा
बाबा लक्खीशाह बनजारा जी रायसिना दिल्ली के रहने वाले थे। उनका जन्म 15 अगस्त 1580 संवत सावन वदी अष्टमी 1637 को पिता गोधू ठाकर व माता कंतो के घर हूआ था। बाबा जी के दस लड़के व एक लड़की थी। बाबा जी बहुत बड़े व्यापारी थे। उनका व्यापार विदेशो के साथ भी चलता था। बाबा जी जहाँ भी व्यापार करने के उदेशय से जाते थे वहाँ ही सैंकड़ों एकड़ ज़मीन ख़रीदकर आपने विश्राम के लिये सरांये, तलाव व कुवो का निर्माण करवाते थे, ऐसा एक स्थान पंजाब मे गाँव सरांए बनजारा है। आनंदपुर साहिब शहर की तमाम ज़मीन बाबा लखीशाह बनजारा एवंम मक्खन शाह लबाना जी ने ख़रीद कर गुरू तेग़ बहादुर जी को भेंट की थी। जब गुरू गोबिंद सिंह साहिब जी ने गुरुद्वारा माल टेकरी नांदेड साहिब के पास सिखों को तनख़्वाह दी थी उस समय बाबा लक्खीशाह बनजारा जी के पोते ने सौ खच्चर मोहरे दी थी। 11-11-1675 को औरंगजेब बादशाह ने श्री गुरू तेग़ बहादुर साहिब को शहिद करवा दीया था और बाबा लक्खीशाह बनजारा जी ने आपने बड़े बेटे नगाहीया को साथ ले कर गुरू जी की देह को चाँदनी चौंक से उठा कर अपने घर ले जा कर घर को आग लगा कर गुरू जी के धड़ का अंतिम संस्कार किया था। बाबा लक्खीशाह बनजारा जी ने अपने जिस घर को आग लगायी थी उस जगह पर वर्तमान में दिल्ली में संसद भवन के पास रकिब्गंज गुरुद्वारा बना हुआ है! बाबा जी 10 जून 1680 को वीरगति को प्राप्त कर गए संग उनके तीन बेटे गुरू गोबिन्द सिंह जी के साथ मुग़लों से लड़ते लड़ते शहीद हुए थे।
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श्री रूपसिंहजी महाराज
तेरहवी शताब्दी में अमरकोट(वर्तमान में पाकिस्तान) से श्री रूपसिंह महाराज के पूर्वज गोपा नायक आये थे वह राजपूत वंश से थे | गोपा अपने भाई पछाण के साथ दिल्ली के बादशाह की शाही सेना में सैनिक थे | यह दोनों भाई गोड़(सोड़ावत) जाति के राजपूत थे | इनके वंश में पछाण का नाहर, नाहर का वीरम, वीरम का रामसिंह और रामसिंह के आसोसिंह, आसोसिंह के रूपसिंह व सूरजमल हुये | रूपसिंह के चार लड़के गोविन्द,गोपाल,धनराज और मोकुल हुये तथा सूरजमल के एक पुत्र धनराज हुआ |

आसोसिंह के पुत्र रूपसिंह बड़े हि निर्भीक, साहसी,स्वाभिमान प्रेमी एवं अपनी स्वतंत्रता में रहने के आदि थे | वो किसी की दासता स्वीकार नहीं करना चाहते थे | अपने अडिग स्वाभाव,खानाबदोष जीवन और सामाजिक अवमानना के कारण उनका अपने वंश एवं कुल से सम्बन्ध विच्छेद हो गया और ये नाहर-मगर के जंगल में रहने लगे | इस कारण विवाह आदि के समाधान हेतु रूपसिंहजी ने एक नविन समाज की स्थापना करने का विचार किया | इन्होंने अपने सहयोगी भाईयो ओगलिया,सुरवात,बगाड़ा को एकत्रित किया व अपनी जाति बदलकर गरासिया हो गये | तीन जातियों ने इनका साथ दिया कछावा जहां रूपसिंह का ससुराल था, चावड़ा जहां रूपसिंह का ननिहाल था, दायमा जो की उनके लड़के मोकुल का ससुराल था | इन्होंने मिलकर नयी जाति बनायीं जिसे बामनिया भाट की संज्ञा दी | इसमें विभिन्न राजपूत वंशो के बारह गोत्र हैं - गोड़,गरासिया,सुरावत,नाथावत,बगाड़ा,ओगालिया ये छ: गोत्र एक हि कूल के माने जाते हे | ये परस्पर अपने को भाई मानते हे |

श्री रूपा नायक नाहर-मगरा के जंगल में रहते थे | उस समय उदयपुर दरबार महाराजा अड़सी शिकार खेलने आये | दरबार को प्यास लगी, सैनिक पानी खोजने लगे इस दोरान उनको रूपसिंह का डेरा मिला | दरबार ने पानी पिलाने के बदले में रूपसिंह की निर्भयता,वीरता से प्रभावित होकर 12 गाव व 11000 बीघा जमीन जागीर में दे दी और रूपसिंह बामनिया में रहने लगे | सभी जागीरदारों को दरबार के यहाँ हाजरी देने जाना पड़ता था लेकिन रूपसिंह को किसी की दासता पसंद नहीं थी | महाराणा ने रूपसिंह को ख़त्म करने के लिये मारवाड़ परगना के एकलमल जिसने मेवाड़ में लुट-पाट मचा राखी थी, को षड़यंत्र पूर्वक दोनों में युद्ध करवाने की ठानी और रूपसिंह को बुलावा भेजा | जब रूपसिंह महाराणा के दरबार में गए तो द्वारपाल ने गेट खोला तब रूपसिंह महाराज जो की गुरु धनराज पंड्या के भगत थे और लाला सती का स्मरण किया और घोड़े को एड़ लगायी | घोडा कूदकर दरबार में प्रवेश हो गया | रूपसिंह ने राजा के अनुसार एकलमल को मारा | एकलमल की पत्नीं रूपसिंह को श्राप देने लगी तब रूपसिंह ने उन्हें रोका और रोकने पर वह कहने लगी उसे पत्नीं के रूप में स्वीकार करे | रूपसिंह ने श्राप से डरकर उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया | गुरु धनराज पंड्या का पूरा किस्सा सुनाया और गुरु ने कहा कि तुमने पाप किया हे और पाप का प्रायश्चित करने के लिये चारनाथ भुजा का शिखर बनाओ तथा गायों के पीने के पानी के लिये तालाब का निर्माण कराओ | तब रूपसिंह ने चार भुजा का मंदिर बनाया तथा बामनिया के आसपास सात तालाब खुदवाए |

श्री रूपसिंह महाराज को एकलमल के मामा मंगलिया ने औरत के वैश में आकर कटार मार दी और कमरबंद खोलने के दोरान वह वीर गति को प्राप्त हो गए |
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श्री लक्ष्मण चैतन्य महाराज
ब्रह्मलीन संत श्री लक्ष्मण चैतन्य महाराज - कम उम्र में साधक जीवन जी कर सम्पूर्ण समाज में विशेष कर बंजारा समाज में अशिक्षा, रूडीवादिता एवं मद्यमान के विरुद्ध जागरुकता फैलाने वाले संत श्री लक्ष्मण चैतन्य महाराज जिन्हें समाज के लोग प्यार से बापू कहते है। वह आज हमारे बीच नही है परन्तु उनककी विचारधारा आज भी हमारे बीच है। आपके भक्त आज भी चैतन्य आश्रम पाल (महाराष्ट्र) एवं चरुकेश्वर धाम बडवाह (म.प्र.) में गुरु पूर्णिमा को लाखो की तादात में एकत्रित होते है।
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संत श्री विष्णुजी महाराज
परम पूज्य सन्त श्री विष्णू जी महाराज इनका जन्म १८ जुलाई १९६७ में ग्राम मारुगड़ तहसील झिरनिया जिला खरगोनमें परम पूज्य सरी झबरसिंह महाराज की धर्मपत्नी परम पूज्य माताजी मैथली देवी से जन्म लिया आपकी शिछा समाजशास्त्र से स्नातक किया तत्पश्चात आप शिछक के रूप में भी कार्यरत रहे |आप ने सामाजिक व् धार्मिक कार्यों में अपना सहयोग दिया |आपका विवाह गायत्रीदेवी से १६ मई १९९४ में हुआ |धर्म पारायण पत्नी के साथ मिलकर अपने पिता गुरु के सानिध्य में हर धार्मिक आयोजन को सफल करते रहे |पिता के देव लोक गमन हो जाने के बाद अपने ॐ साईं सेवासक्ती धाम २९ मार्च १९९९ में गुरु गादी का दायित्व सम्भाला जो निरंतर आज तक चल रहा हे कई सामाजिक संघटनो में सामिल होकर समरसता का भव जगाया जिसके चलते सम्पूर्ण भारत के हर प्रान्त से अपना दुःख दर्द लेकर लोग आते हे और परम पूज्य बापूजी मा भगवती की कर्पा से प्राप्त कर उनकी कुशलता की कामना मा से करते हे |जिससे आने वाले भक्तो का कल्याण होता हे बपिजी को संगीत से प्रेम होकर सर्गित की हर शेली से परिचित हे |बापूजी का वंश परमपूज्य संत सेवालाल महाराज के वंश से जुड़ा हुआ हे|यह माता राणी की गादी परम्परागत कई पीडियो से चली आ रही हे| आप गृृहस्थ जीवन के साथ-साथ दीनदुखियों की सेवा करना आपने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है।